हजरत निज़ामुद्दीन औलिया: जो मानते थे कि ख़ुदा से इश्क तभी हो सकता है जब उसके बंदों से भी हो हजरत निज़ामुद्दीन औलिया अक्सर कहा करते थे - ‘मदीना की गलियों में मुझे ख़ुदा ग़रीबों के बीच ही मिला है’ अपने वजूद में आने के 100 सालों में ही इस्लाम मक्का से हिंदुस्तान की दहलीज़ तक आ गया था. नेहरु अपनी किताब ‘ग्लिम्प्सेस ऑफ़ वर्ल्ड हिस्ट्री’ में लिखते हैं - ’इस्लाम एक नयी ताक़त थी, नया विचार था जिसने अरबवासियों में, जो एक तरह से सुप्त्वास्था में थे, एक नया विश्वास और जोश भर दिया.’ शायद यही कारण है कि इस्लाम बाक़ी मजहबों के मुकाबले दुनिया में सबसे तेज़ी से फैला. इस्लाम में से ही सूफीवाद की धारा फूटकर निकली जो वेदांत के रहस्यवाद से काफी मेल खाती थी. इसका भी आधार ‘रहस्य’ यानी ‘तसव्वुफ़’ था. ‘सूफ़ी’ लफ्ज़ की उत्पत्ति भी बड़ी रहस्यमयी है. अपनी किताब ‘कंटेम्परेरी वर्ल्ड ऑफ़ सूफीइज्म’ में सईद मनल शाह अलकादरी लिखते हैं कि सूफी लफ्ज़ अरबी और फ़ारसी के कुल आठ लफ़्ज़ों में से किसी एक से बना है: 1- ‘सफ़ा ’ - मतलब दिल की सफ़ाई. 2- ‘सफ़ा अव्वल’ - पहली पंक्ति में बैठने वाले भक्त. 3- ‘बनू सफ़ा’ - अरब की एक